काशी में विराजमान महाबलेश्वर महादेव के दर्शन अब आम श्रद्धालुओं के लिए सुलभ होगा। केंद्रीय ब्राह्मण महासभा और काशी की जनता की पहल पर वीडीए ने इसे चिह्नित करने का काम शुरू कर दिया है। तीस साल से जमीन के अंदर धंसा शिवलिंग अब उभरकर सामने आ गया है। मंदिर में पूजन का इंतजाम कराने के लिए श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास को जिम्मेदारी दी जाएगी।

सूरजकुंड मोहल्ले में तीस सालों से शनिदेव के रूप में पूजित हो रहे महाबलेश्वर महादेव के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू हो गया है। केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष की पहल पर वीडीए ने जब मोहल्ले में खोदाई कराई तो सात इंच का विग्रह जमीन में ढाई फीट से अधिक नीचे था। वर्तमान में महाबलेश्वर महादेव का तीन फीट का विग्रह सामने आ चुका है। तीन दशक से स्थानीय लोग इस विग्रह को शनिदेव का विग्रह मानकर इसकी पूजा कर रहे थे। अब मंदिर में शेड लगाने के साथ ही जीर्णोद्धार का काम भी शुरू हो चुका है। 

शनिदेव मानकर चढ़ा रहे थे तेल

प्रदेश अध्यक्ष ने विधायक पीएमओ और न्यास अध्यक्ष प्रो.को पत्र सौंपकर महाबलेश्वर महादेव का वैदिक पूजन शुरू कराने का अनुरोध किया है। विधायक डॉ. नीलकंठ तिवारी ने विधायक निधि से इसका सुंदरीकरण कराने का आश्वासन दिया है। वहीं, न्यास अध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पांडेय ने न्यास की ओर से महाबलेश्वर महादेव का वैदिक पूजन कराने की बात कही है।
 
काशी में स्वयंभू प्राकट्य महाबल लिंग मुखलिंग है। तीन दशक से भी अधिक समय से नाम अज्ञात होने के कारण और मुखलिंग होने के कारण अज्ञानवश इन्हें शनि के रूप में पूजा जाने लगा। सिंदूर का लेपन कर क्षेत्र निवासी तेल चढ़ाने लगे। आज भी लोग उन्हें शनिदेव ही कहते हैं। खोदाई के बाद जब महाबलेश्वर महादेव का स्वरूप सामने आया है तो स्थानीय लोग भी आश्चर्यचकित हैं। स्कंद पुराण में महाबलेश्वर महादेव के सांबादित्य के पास होने के प्रमाण मिलते हैं। यह काशी के 68 आयतन देवताओं की तरह ही गोकर्ण से काशी आए थे।