अयोध्या । अवध की राजनीति में भले ही महिलाओं की अलग पहचान है। यहां से जीतकर इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थीं। यूपीए गठबंधन की धुरी रहीं सोनिया भी अमेठी और रायबरेली से जीतकर आगे बढ़ीं, लेकिन अवध के केंद्र अयोध्या में अभी भी महिलायें इंतजार कर रही हैं।
18वीं लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। आधी आबादी को जब भी मौका मिला हर क्षेत्र में उसने सफलता का परचम लहराया है। बस लोकसभा चुनाव में ही वह मुकाम हासिल नहीं हुआ जिसकी वह हकदार हैं। इसके पीछे वजह यह नहीं है कि उनमें काबिलियत की कमी है बल्कि वह प्रमुख राजनीतिक दलों की उपेक्षा की शिकार हैं। नेताओं ने महिला मतों को हासिल करने में तो दिलचस्पी दिखाई लेकिन वह उन्हें संसद भेजने की इच्छाशक्ति नहीं दिखा पाए। अयोध्या में यदा-कदा निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उन्होंने ताल ठोंकी भी तो उन्हे हार का सामना करना पड़ा। पहली बार 1971 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी चुनाव लड़ीं लेकिन वह हार गईं। इसी समय निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सरोज ने 10 हजार 232 मत हासिल किए थे। 1996 में निर्दलीय शशिकला विश्वकर्मा को 1606 मत मिले थे। 1999 में सुधा सिंह व चंद्रकांति राजवंशी, 2009 में नजरीन बानो निर्दलीय चुनाव लड़ीं। इन्हें भी मामूली वोट ही मिले। इस बार भी सभी प्रमुख दलों ने अपना पत्ता खोल दिया है लेकिन हर बार की तरह महिलाएं किसी भी दल का भरोसा नहीं जीत सकी हैं। संसद पहुंचने का इनका सपना अधूरा रह गया है।