बैंकों में नकदी की बढ़ती तंगी और कर्ज में दशक के उच्चतम स्तर 18 प्रतिशत की वृद्धि तथा जमा में कमी के बीच एक रिपोर्ट में चेताया गया है कि बैंक संपत्ति और देनदारी दोनों स्तरों पर जोखिम से बचाव के लिए पर्याप्त उपाय नहीं कर रहे।

रिपोर्ट के अनुसार, बैंकिंग प्रणाली में नकदी की कमी का प्रमुख कारण भारतीय रिजर्व बैंक का मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिये बैंकों से अतिरिक्त कोष को वापस लेना है। खुदरा मुद्रास्फीति पिछले 10 महीने से रिजर्व बैंक की संतोषजनक सीमा से ऊपर बनी हुई है। इसको देखते हुए आरबीआई महंगाई को काबू में लाने के लिये प्रमुख नीतिगत रेपो दर में पिछले छह महीने में 1.90 प्रतिशत की वृद्धि कर चुका है।

आरबीआई को खुदरा मुद्रास्फीति दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है।बैंकों में शुद्ध रूप से अप्रैल 2022 में औसतन 8.3 लाख करोड़ रुपये की नकदी डाली गयी। यह अब करीब एक-तिहाई कम होकर तीन लाख करोड़ रुपये पर आ गयी है। इसके अलावा सरकार ने दिवाली के सप्ताह में अपने नकद शेष का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया है और इसके परिणामस्वरूप शुद्ध एलएएफ (नकदी समायोजन सुविधा) में सुधार हुआ है। इसके अलावा सरकार और निजी क्षेत्र के बोनस भुगतान से भी मदद मिली।

नकदी समायोजन सुविधा (एलएएफ) मौद्रिक नीति में उपयोग किया जाने वाला एक उपाय है। इसके जरिये रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में नकदी प्रबंधन के लिये रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट का उपयोग करता है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने एक रिपोर्ट में कहा कि बैंकों में एक तरफ ब्याज दर बढ़ी है, दूसरी तरफ नकदी को सोच-विचार कर कम किया गया है। लेकिन एक चीज अभी भी नहीं बदली है। वह है कर्ज को लेकर जोखिम का पर्याप्त रूप से प्रबंधन।

उन्होंने कहा कि एक तरफ कर्ज की मांग एक दशक के उच्चस्तर पर है जबकि नकदी की स्थिति उल्लेखनीय रूप से कम हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, भले ही बैंक व्यवस्था में शुद्ध एलएएफ घाटा देखा जा रहा है, लेकिन बाजार सूत्रों का कहना है कि मुख्य कोष की लागत के ऊपर कर्ज को लेकर जो जोखिम है, उसका पूरा ध्यान नहीं रखा गया है।उदाहरण के लिये एक वर्ष से कम अवधि का कार्यशील पूंजी कर्ज छह प्रतिशत से कम दर पर दिया जा रहा है और यह एक महीने व तीन महीने के ट्रजरी बिल की दर से जुड़ा है जबकि 10 और 15 वर्ष के कर्ज की लागत सात प्रतिशत से कम है।उल्लेखनीय है कि 10 साल की अवधि वाली सरकारी प्रतिभूतियां करीब 7.46 के आसपास की दर पर कारोबार रही हैं। वहीं, 91 दिन की अवधि वाले ट्रेजरी बिल 6.44 की दर पर कारोबार कर रहे हैं।

वहीं 364 दिन का ट्रेजरी बिल की लागत 6.97 प्रतिशत है।बैंकों में मुख्य कोष जुटाने की औसत लागत करीब 6.2 प्रतिशत है जबकि रिवर्स रेपो दर 5.65 प्रतिशत है। ऐसे में आश्चर्य की बात नहीं है कि बैंक वर्तमान में जमा राशि जुटाने के लिये ब्याज दर बढ़ाने की होड़ में हैं। चुनिंदा परिपक्वता अवधि की जमाओं पर ब्याज दर 7.75 प्रतिशत तक कर दी गयी है। इसके अलावा, बैंक अब 390 दिनों के लिये जमा प्रमाणपत्र (सीडी) 7.97 प्रतिशत की दर पर जुटा रहे हैं। जबकि कुछ बैंक 92 दिनों के लिये सीडी 7.15 प्रतिशत पर जुटा रहे हैं।

वित्तपोषण अंतर को जमा प्रमाणपत्र के जरिये पूरा किया जा रहा है। कुल जमा प्रमापणत्र 21 अक्टूबर की स्थिति के अनुसार 2.41 लाख करोड़ रुपये रहा, जो एक साल पहले इसी अवधि में 57 हजार करोड़ रुपये था। घोष ने रिपोर्ट में कहा गया है कि बॉन्ड प्रतिफल भी अप्रैल, 2022 के बाद 2.55 प्रतिशत बढ़ा है और अक्टूबर, 2022 में 6.92 प्रतिशत रहा। रिपोर्ट के अनुसार, सकारात्मक बात यह है कि कोष जुटाने और कर्ज देने को लेकर जो होड़ है, वह ‘एएए’ दर्जे वाले कर्जदारों तक सीमित है।