भोपाल । सरकार अब बांधों से सिल्ट निकालने के लिए राजस्थान और केरल मॉडल को अपनाएगी। इसके लिए जल्द ही एक टीम इन राज्यों का दौरा करेगी। इन राज्यों ने बांधों से सिल्ट निकालने के लिए टेंडर प्रक्रिया की है, मध्यप्रदेश भी पिछले दो वर्षों से चार बांधों के लिए टेंडर प्रक्रिया कर रहा है, लेकिन किसी कंपनी ने टेंडर लेने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। यदि टेंडर हो जाते तो सरकार को सालाना करीब 200 करोड़ रुपए का राजस्व मिलता।
जल संसाधन विभाग के अफसरों के अनुसार बरगी, तवा, इंदिरा सागर और बाणसागर बांध में करीब 25 हजार लाख क्यूबिक मीटर सिल्ट जमा है। इसमें से करीब 10 हजार लाख क्यूबिक मीटर रेत जमा है। अधिकारियों का कहना है कि इतनी रेत और गाद को निकालने में करीब 40 से 50 साल का समय लगेगा। तब तक काफी मात्रा में रेत फिर प्राकृतिक रूप से बांधों में जमा हो जाएगा। इस समय 1 हजार घन फीट रेत की कीमत करीब 50 हजार रुपए है। इस हिसाब से बांधों में अरबों रुपए की रेत मौजूद है। अधिकारियों का कहना है कि अभी प्रदेश के किसी भी बांध में क्षमता से ज्यादा सिल्ट नहीं है, लेकिन यदि इनसे सिल्ट निकलेगी तो सरकार को राजस्व मिलेगी और बांधों की जल संग्रहण क्षमता भी बढ़ेगी। इससे शासन को 100 प्रति घन मीटर राजस्व मिलेगा।
इधर, विभाग ने ठेका कंपनियों को बुलाने के लिए नियमों में बदलाव की कवायद शुरू कर दी है। विभाग इन कंपनियों को 10 से 15 वर्षों तक रेत निकालने की अनुमति देगी। यदि किसी वर्ष पर्याप्त मात्रा में रेत नहीं निकलेगी तो ठेका कंपनी को घाटे से बचाने उसकी रॉयल्टी भी माफ कर दी जाएगी। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि करीब पांच वर्षों से बांधों से रेत निकालने की नीति पर मंथन हो रहा है। इन बांधों का अधिकांश क्षेत्र जंगल के आसपास है। ऐसे में यहां हर जगह से निकालना मुश्किल काम होगा। वन अनुमति मिलना भी आसान नहीं। बांध साइट से गाद और रेत के स्टॉक को एकत्रित करने के लिए भी लंबी दूरी तय करनी होगी। जो ठेकेदार का खर्च बढ़ाएगी। सरकार की मंशा है कि उपजाऊ गाद किसानों को फ्री दे दी जाए, लेकिन इसका उपयोग ईंट, टाइल्स, कप और सिरेमिक उत्पाद बनाने में किया जा सकता है। यदि शासन बांध की सिल्ट की कैमिकल जांच कराकर और उत्पाद मार्केट के बारे में ठेका कंपनियों को बताएगी तो वे आगे आएंगी, लेकिन इस ओर अभी ध्यान नहीं दिया जा रहा। स्टडी सेंटर बनाकर सिल्ट की क्वालिटी की जांच करना चाहिए।