प्रतिनियुक्ति खत्म होने के 14 वर्ष बाद विभागीय जांच
बिलासपुर । याचिकाकर्ता युगल किशोर चंद्राकर की नियुक्ति कॉपरेटिव इंस्पेक्टर के पद पर सहकारिता विभाग में हुई थी। वर्ष 1987 से 1997 तक याचिकाकर्ता को कार्यालय कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट/ जनरल मेनेजर जिला वनोपज सहकारी संघ दुर्ग में प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया था। प्रतिनियुक्ति की अवधि पूर्ण करने के बाद 06.03.1997 को याचिकाकर्ता के पक्ष में कोई भी शिकायत या वसूली का प्रकरण लंबित नहीं होने का प्रमाण पत्र प्रदान करते हुए उनकी पदस्थापना मूल विभाग में की गयी।
लगभग 14 वर्ष के बाद बिना किसी ठोस प्रमाण के 3 अगस्त 2011 को याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रतिनियुक्ति के दौरान हिसाब नहीं देने का आरोप लगाते हुए विभागीय जांच गठित की गयी। तीन बार इंक्वायरी करने के बाद भी याचिकाकर्ता के विरुद्ध आरोप प्रमाणित नहीं किया जा सका तथा डिसीप्लिनरी अथॉरिटी रजिस्ट्रार को-ऑपरेटिव सोसाइटी, द्वारा बारंबार पत्र लिखने के बावजूद चीफ कंजरवेटर आफ फॉरेस्ट एवं मैनेजिंग डायरेक्टर जिला लघु वनोपज सहकारी संघ मर्यादित बालोद के द्वारा कोई भी जवाब नहीं दिया गया और ना ही आरोप के समर्थन में आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत किए गए।
इसी बीच याचिकाकर्ता को-ऑपरेटिव इंस्पेक्टर के पद से 29 फरवरी 2016 को सेवानिवृत्त हो गए और पैसों की अत्यधिक आवश्यकता होने के कारण अपने हक के पेंशन ग्रेच्युटी एवं अन्य रिटायरमेंटल बेनिफिट के लिए निवेदन किया लेकिन ना तो रिटायरल बेनिफिट्स दिए गए और ना ही विभागीय जांच पूर्ण की गयी। जिससे क्षुब्ध होकर याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष प्रतीक शर्मा, निशांत भानूशाली, जे के मेहता अधिवक्ता गण के माध्यम से याचिका प्रस्तुत की जिसमें सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय के द्वारा मामले की गंभीरता को देखते हुए 11.1.2022 को रजिस्ट्रार कोऑपरेटिव सोसाइटी को स्वयं का शपथ पत्र प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित किया गया था कि 10 वर्षों के पश्चात भी विभागीय जांच क्यों पूर्ण नहीं की गयी है ? जिसमें रजिस्ट्रार द्वारा शपथ पत्र प्रस्तुत करते हुए जानकारी दी गयी कि पीसीएफ एवं मैनेजिंग डायरेक्टर जिला लघु वनोपज सहकारी संघ मर्यादित बालोद को बारंबार पत्र लिखने एवं दस्तावेज मांगने के बावजूद ना तो जवाब दिया गया और ना ही दस्तावेज दिए गए तथा विभागीय जांच संबंधित रिकॉर्ड प्राप्त होने के पश्चात ही पूर्ण की जा सकेगी।
रजिस्ट्रार के उक्त शपथ पत्र को अत्यधिक निराशाजनक बताते हुए माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने मामले को अत्यधिक गंभीरता से लिया एवं अपने आदेश दिनांक 17.2. 2022 में य़ह उल्लेखित किया कि रजिस्ट्रार कोऑपरेटिव सोसायटी राज्य का बहुत जिम्मेदार अधिकारी होता है, और 10 वर्ष के लंबे अवधि तथा याचिकाकर्ता के 6 साल पहले के रिटायरमेंट को देखते हुए पंजीयक को उक्त असहयोग के मामले को प्रिंसिपल सेक्रेट्री फॉरेस्ट के समक्ष रिपोर्ट करना था और न्यायालय में दूसरों के विरुद्ध शिकायत करते हुए शपथ पत्र प्रस्तुत करने के बजाय व्यक्तिगत तौर पर मामले का निराकरण करना था।
साथ ही माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने रजिस्ट्रार को-ऑपरेटिव सोसाइटी को 15 दिवस के भीतर इस बात का अतिरिक्त शपथ पत्र प्रस्तुत करने का आदेश दिया है कि रजिस्ट्रार द्वारा राज्य सरकार का ध्यान आकर्षण करते हुए मामले को शीघ्रता से निपटाने हेतु पत्राचार क्यों नहीं किया गया ? माननीय उच्च न्यायालय ने प्रमुख सचिव फॉरेस्ट को स्वयं का शपथ पत्र 15 दिवस के भीतर प्रस्तुत करके बताने हेतु आदेशित किया है कि मैनेजिंग डायरेक्टर / पी सी एफ के द्वारा पंजीयक को विभागीय जांच में सहयोग क्यों नहीं दिया गया।
माननीय उच्च न्यायालय ने आदेश दिनांक 17.2. 2022 की कॉपी मुख्य सचिव छत्तीसगढ़ शासन को भेजते हुए यह स्पष्टीकरण मांगा है कि मैनेजिंग डायरेक्टर / पीसीसीएफ द्वारा विभागीय जांच में रजिस्टार को-ऑपरेटिव सोसायटी को क्यों सहयोग नहीं दिया जा रहा है और मुख्य सचिव को मामले को देख कर अपनी रिपोर्ट 15 दिवस के भीतर प्रस्तुत करने आदेश दिया है तथा उक्त मामले को 14.3.2022 के हफ्ते में पुन: सुनवाई हेतु लगाने का आदेश दिया है।