आगरा की जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी के नए शहर मुफ्ती को तैनात करने का विवाद सोमवार को सार्वजनिक तौर पर खुले मंच पर आ गया। शहर मुफ्ती मजदुल कुद्दूस खुबैब रूमी ने अपनी तकरीर में जामा मस्जिद कमेटी के खिलाफ खुलेआम मोर्चा खोल दिया। अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि 40 साल तक उनके वालिद ने ईद की नमाज अदा कराई। 15 साल से वह अदा करा रहे हैं। एक डुप्लिकेट इस्लामिया लोकल एजेंसी बनाकर जामा मस्जिद इंतजामिया का सदर इस्लाम को फिकरों में बांटने का काम कर रहा है। जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी ने बरसों से शहर मुफ्ती के पद का दायित्व संभाल रहे मजदुल खुबैब रूमी से मतभेद के बाद नए मुफ्ती को तैनात किया है। मुफ्ती की तनख्वाह देना भी बंद कर दिया है। नमाज के बाद शहर मुफ्ती ने सवाल किया कि इस ईदगाह में मौजूद लोगों में से अगर कोई एक शख्स भी उनको शहर मुफ्ती नहीं देखना चाहता या उनके पीछे नमाज नहीं पढ़ना चाहता है तो वह अभी इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं। इस पर परिसर में सन्नाटा पसर गया। उन्होंने जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी को डुप्लीकेट बताते हुए कहा कि इस कमेटी को यह इख्तियार किसने दिया कि वह शहर मुफ्तियों को तैनात करे। मुफ्ती के साथ बदजुबानी और बदसलूकी करे। उन्हें 14 माह से तनख्वाह भी अदा नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि कमेटी कुरैशी मुफ्ती, पठान मुफ्ती, अंसारी मुफ्ती, देवबंदी मुफ्ती, बरेलवी मुफ्ती वगैरह चार-चार शहर मुफ्ती बनाकर शहर में फिरकापरस्ती को बढ़ावा देने का काम कर रहा है। शहर मुफ्ती ने कहा कि जब कोर्ट ने साफ कर दिया कि इस्लामिया लोकल एजेंसी एक ही है, इसके सदर हाजी असलम कुरैशी हैं। इसके बाद उनके बेटे अमजद कुरैशी हैं। तो फिर नकली इस्लामिया एजेंसी क्यों बनी हुई है। उन्होंने कहा कि शहर मुफ्ती को तैनात करने का इख्यितार इस्लामिया लोकल एजेंसी को कभी नहीं रहा। यह काम सन 1857 से मजलिसे अहले इस्लाम का रहा है। जिसमें आगरा के चुनिंदा दानिश्वर, उलेमा और दीनदार बुजुर्ग हजरात शामिल रहे हैं। जोकि शहर मुफ्ती का इंतखाब करते चले आ रहे हैं। उन्होंने साफ कहा कि हर बार नमाज का वक्त मुकर्रर करने की जिम्मेदारी शहर मुफ्ती की होती है। इस बार ईद की नमाज की किताब ही गलत छाप दी गई।