भोपाल । कांग्रेस ने रविवार को मप्र में 144 प्रत्याशियों की सूची जारी की तो उसमें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति का नाम न होना प्रदेश की राजनीति में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस संदर्भ में कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ सरकार गिराने में प्रजापति की महत्वपूर्ण भूमिका थी। कहा तो यहां तक जा रहा है कि बागी  विधायकों के साथ प्रजापति की जलेबी भी सीरा पी गई थी। इसलिए उनका टिकट कटा है।
गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार 15 माह 3 दिन तक अस्तित्व में रही। मध्य प्रदेश में कांग्रेस से बगावत करने वाले विधायकों का 10 दिन तक ड्रामा चला। मध्य प्रदेश के विधायकों को दूसरे राज्य में ले जाकर बंधक बनाकर रखा गया था। ऐसा उस समय समाचार पत्रों में छप रहा था। कांग्रेस विधायकों को हरियाणा की एक होटल में ले जाकर रखा गया था। उस होटल में जब कांग्रेस के नेता पहुंच गए तब विधायकों को कर्नाटक ले जाया गया था। कर्नाटक में भाजपा की सरकार थी। 22 विधायकों को कांग्रेस से बगावत करने का प्रलोभन देकर उन्हें इस्तीफा के लिए मजबूर किया गया था।
लगभग 10 दिन तक चले इस राजनीतिक ड्रामे में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति की भूमिका सबसे संदेहप्रद रही। एक साथ 16 विधायकों को कर्नाटक से लाकर सीधे विधानसभा में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच, वर्तमान गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और नगरीय विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह बागी विधायकों को लेकर पहुंचे थे। विधानसभा अध्यक्ष के सामने परेड कराई गई। विधानसभा अध्यक्ष ने उनके इस्तीफे बिना सुनवाई के स्वीकार कर लिए। जबकि विधानसभा अध्यक्ष के रूप में उन्हें प्रत्येक विधायक के अलग-अलग बयान लेने चाहिए थे। इस्तीफा देने  का कारण भी जानना चाहिए था। संतुष्टि होने के बाद ही बागी विधायकों के इस्तीफा स्वीकार किए जाने चाहिए थे। विधानसभा अध्यक्ष ने उस समय यह संवैधानिक जिम्मेदारी पूरी ना करके सभी 16 विधायकों के इस्तीफा को स्वीकार कर भारी त्रुटि की थी। विधानसभा अध्यक्ष के इस निर्णय से कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई थी। विधानसभा अध्यक्ष के इस निर्णय के बाद कमलनाथ को फ्लोर टेस्ट के पहले ही इस्तीफा देने मजबूर होना पड़ा। विधानसभा अध्यक्ष सभी विधायकों के सामूहिक स्थिति को तुरंत स्वीकार नहीं करते। विधानसभा अध्यक्ष के रूप में न्यायिक प्रक्रिया को पूर्ण करते। उनके बयान इत्यादि लेने की पूरी कार्यवाही करते। ऐसी स्थिति में कमलनाथ की सरकार को गिराना आसान नहीं होता। बहरहाल कांग्रेस के बहुमत से निर्वाचित विधानसभा अध्यक्ष के होते हुए भी कमलनाथ की सरकार गिराने में कहीं ना कहीं एनपी प्रजापति की भूमिका की चर्चा होती है। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिरने के बाद, सरकार गिराने के लिए एनपी प्रजापति को कांग्रेस जिम्मेदार मानती है।
सरकार गिरने के बाद एनपी प्रजापति लोक लेखा समिति का अध्यक्ष बनने के प्रयास कर रहे थे। लेकिन कांग्रेस संगठन ने उन्हें लोक लेखा समिति का अध्यक्ष नहीं बनाया। पीसी शर्मा को लोक लेखा समिति का अध्यक्ष बनाया गया। एनपी प्रजापति को इस बार गोटेगांव विधानसभा की टिकट नहीं दी गई है। इसके पीछे मुख्य कारण यही बताया जा रहा है, कि कांग्रेस सरकार को गिराने में एनपी प्रजापति की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसी कारण से इस बार कांग्रेस ने उन्हें अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है।
इस मामले में महाराष्ट्र के वर्तमान विधायक सबसे बड़ा उदाहरण हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना के विधायकों को मध्य प्रदेश की तर्ज पर बगावत कराकर, उन्हें गुजरात और असम ले जाया गया था। वहीं महाराष्ट्र के विधानसभा अध्यक्ष को राज्यपाल की मदद से हटाकर विधानसभा का नया अध्यक्ष बनाकर फ्लोर टेस्ट कराया गया था। आज भी विधानसभा अध्यक्ष विधायकों की अयोग्यता के बारे में कोई निर्णय नहीं कर पा रहे हैं। सरकार बागी विधायकों के दम पर चल रही है। विधानसभा अध्यक्ष के रूप में एनपी प्रजापति को सही मायने में विधायकों के अलग-अलग बयान लेने चाहिए थे, उनसे इस्तीफा देने का कारण और किसी दबाव अथवा प्रलोभन में तो इस्तीफा नहीं दे रहे हैं, इसकी जांच किए बिना 16 विधायकों के इस्तीफा स्वीकार कर, कमलनाथ को अल्पमत की सरकार बना दिया था। एनपी प्रजापति ने यह क्यों किया होगा, यह वह अच्छी तरीके से जानते होंगे।
सरकार गिराने के लिए विधायकों पर करोड़ों रुपए लेने का आरोप कांग्रेस नेताओं ने लगाया था। कांग्रेस  नेताओं द्वारा कहा गया था, कि विधायकों को 35 करोड़ रुपए दिए गए हैं। चुनाव जीतने और मंत्री बनाने का प्रलोभन भी दिया गया था। चुनाव के लिए प्रत्येक विधायक का खर्चा भाजपा ने उठाया था। एनपी प्रजापति की टिकट कटने से एक बार फिर बगावत का मामला और विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका चर्चाओं में आ गई है।