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तारीख पर तारीख’… अदालत का नाम सुनते ही ये जुमला जुबां पर आ ही जाता है। हालांकि, कोर्ट केस के सालों चलने के पीछे कुछ बहुत मामूली वजहें भी होती हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनकी पेशी की जरूरत सिर्फ एक-दो बार ही होती है, पर उनके पेश न होने से केस खिंचता रहता है।

इस दिक्कत को दूर करने के लिए अब केंद्र की न्यायश्रुति योजना के तहत बड़ी पहल की गई है। मप्र में पहली बार 2000 लोकेशन पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (वीसी) सेटअप लगाने की तैयारी है। ये सेटअप साउंडप्रूफ और ईकोप्रूफ रूम में लगाए जाएंगे। मप्र में स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है।

केंद्र सरकार प्रति साइट के लिए दो लाख रुपए राज्य सरकारों को देगी। साथ ही कंप्यूटर, वीसी सेटअप और 100 एमबीपीएस की इंटरनेट लाइन की व्यवस्था भी की जानी है। मप्र के सभी थाने, एसडीओपी-सीएसपी या एसीपी ऑफिस और एसपी ऑफिस शामिल किए गए हैं।

इस सेटअप के लिए दिल्ली नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर ने एक सॉफ्टवेयर डिजाइन किया है। देश के सभी राज्यों की पुलिस इसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करेगी। न्यायश्रुति योजना का मप्र में पहला चरण अगले 6 महीने में शुरू किया जाना है।

सिर्फ हां या ना सुनने के लिए भी लंबा इंतजार

फिलहाल यह व्यवस्था विवेचना अधिकारियों, मौके पर पहुंचने वाले स्टाफ, पंच-साक्षियों, प्रत्यक्षदर्शी गवाहों, मेडिकल रिपोर्ट देने वाले डॉक्टरों और पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार करने वाले चिकित्सकों के लिए की जा रही है।

अब तक इन सभी को, चाहे उन्हें सिर्फ ‘हां’ या ‘ना’ में जवाब ही क्यों न देना हो, अदालत में पेश होने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी। मसलन, किसी डॉक्टर ने किसी आपराधिक मामले में पुलिस को मेडिकल रिपोर्ट दी हो, तो भी उसे कोर्ट में पेश होना पड़ता था। अदालत में सिर्फ यह पूछा जाता- क्या आपने यह रिपोर्ट दी है? जवाब होता- हां। कई बार ट्रांसफर हो जाने के बाद भी उन्हें संबंधित जिले की कोर्ट में हाजिर होना पड़ता था।

कहीं से भी जुड़ सकेंगे, ट्रांसफर होने वालों को भी लाभ योजना के जरिए गवाहों को अपने लोकल थाने, सीएसपी ऑफिस या एसपी ऑफिस में जाकर पेशी अटेंड करने की सहूलियत मिल जाएगी। स्थानांतरित हो चुके कर्मचारी अपने मौजूदा जिले से वीसी के जरिए पेशी अटेंड कर सकेंगे।’ -जयदीप प्रसाद, एडीजी, एससीआरबी