राजस्थान में वसुंधरा राजे के प्रभाव से बाहर निकलने की कोशिश में भाजपा
नई दिल्ली । राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थक और विरोधी खेमे के बीच बार-बार उभरने वाले टकराव ने पार्टी की चिंताएं बढ़ाई हुई हैं। राज्य में अगले साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में पार्टी के सामने सभी को एकजुट रखने की चुनौती बनी हुई है। पार्टी को वसुंधरा राजे के एकछत्र प्रभाव से बाहर निकालने की कोशिशों के बीच केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की राज्य में सक्रियता लगातार बढ़ रही है। अगले लोकसभा चुनाव के पहले राजस्थान में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ दिसंबर-2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। राजस्थान में अभी कांग्रेस सरकार है। हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार बनने के बाद से ही कई बार उन्हें अपनी पार्टी के भीतर के असंतोष से ही चुनौती मिलती रही है। इसका लाभ भाजपा को मिलने की संभावना है। गहलोत को सबसे ज्यादा चुनौती सचिन पायलट से मिली है, लेकिन फिलहाल टकराव ठंडा पड़ा हुआ है। बीते सालों में सचिन पायलट के भाजपा के साथ आने की खबरें भी गर्म रही हैं पर यह कभी भी परवान चढ़ती नजर नहीं आई। हालांकि, भाजपा की चिंता कांग्रेस से ज्यादा अपने घर को लेकर है। राजस्थान में बीते दो दशकों से वसुंधरा राजे पार्टी की एकक्षत्र नेता हैं। लेकिन, अब उनका कद केंद्रीय नेतृत्व को रास नहीं आ रहा है। ऐसे में पिछले पांच साल से पार्टी ने दूसरे नेताओं को उभारने की काफी कोशिशें की हैं, लेकिन वसुंधरा राजे के सामने उसकी कोशिशें सफल नहीं हो पाई हैं। वसुंधरा राजे और केंद्रीय नेतृत्व के बीच कई बार टकराव की स्थिति भी बनी। अब अगले विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा नेतृत्व एक बार फिर पार्टी को वसुंधरा राजे के प्रभाव से बाहर लाकर, सबको साथ लेकर चुनाव मैदान में जाने की कोशिश में है। पार्टी ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को लगातार राजस्थान में सक्रिय रखा है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी राजस्थान के मामलों में काफी रुचि ले रहे हैं। वह अपने संसदीय क्षेत्र कोटा के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी विभिन्न केंद्रीय योजनाओं, जनता के सरोकारों से जुड़े कामों को लेकर सक्रिय रहे हैं। इन दोनों नेताओं को पार्टी राज्य में भावी नेतृत्व के रूप में उभार रही है।