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मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य ने अपने शासन के संपूर्ण भू भाग के नागरिकों को ऋण मुक्त करते हुए उन्हें अपने सामर्थ्य का लाभ दिया और विक्रम संवत प्रारंभ करने का ऐतिहासिक कदम उठाया गया। शौर्य, दानशीलता, न्याय का परिचय देकर सुशासन की व्यवस्था लागू की। वे सम्पूर्ण राष्ट्र को ऋण मुक्त करने में सफल हुए। पुनः संवत का प्रवर्तन हो चुका था। सम्राट विक्रमादित्य ने नवरत्नों को जुटाया। विनम्रता से राज्य के छोटे से छोटे व्यक्ति के कल्याण की चिंता करते थे।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि इतिहास की इस कथा को अनूठी कल्पना के साथ प्रस्तुत किया गया। सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में रात्रि गश्त का प्रसंग भी महत्वपूर्ण है। सम्राट विक्रमादित्य राज्य के अपराध से जुड़े लोगों के गुणों को भी जानते थे और उन गुणों का उपयोग राष्ट्र कल्याण में करने और देश हित में उन्हें उन्मुख करते थे। राज्य रोहण पूरी शान के साथ होता है। महाकाल महाराज की कृपा से वे अद्वितीय शासक बने।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य महानाटक के सभी कलाकार अभिनंदन के पात्र हैं। यहां फिल्मांकन की तरह नाट्य मंचन हुआ है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने समस्त कलाकारों को बधाई दी और उनका अभिनंदन किया। राजस्व मंत्री श्री करण सिंह वर्मा, पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीमती कृष्णा गौर,विधायक श्री रामेश्वर शर्मा, श्री भगवान दास सबनानी, भोपाल नगर निगम अध्यक्ष श्री किशन सूर्यवंशी, जनप्रतिनिधि, अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री कार्यालय श्री नीरज मंडलोई, अपर मुख्य सचिव संस्कृति और पर्यटन श्री शिवशेखर शुक्ला मुख्यमंत्री के संस्कृति सलाहकार श्रीराम तिवारी सहित बड़ी संख्या में नागरिक उपस्थित थे।
मध्यप्रदेश के 70वें स्थापना दिवस समारोह “अभ्युदय मध्यप्रदेश” के दूसरे दिवस लाल परेड ग्राउंड, भोपाल का वातावरण सृजन, संस्कृति और कला के रंगों से सराबोर रहा। दिनभर विविध सांस्कृतिक प्रस्तुतियों, लोक-कलाओं और रचनात्मक गतिविधियों ने यह संदेश दिया कि मध्यप्रदेश न केवल विकास की राह पर अग्रसर है, बल्कि अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी नए उत्साह और आधुनिक दृष्टिकोण के साथ संजोए हुए है। परंपरा और नवाचार के इस संगम ने राजधानी को रचनात्मक ऊर्जा से आलोकित कर दिया, जहाँ मंचों पर लोकधुनों, नृत्यनाट्य, संगीत और कलात्मक प्रदर्शनियों की श्रृंखला ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
स्थापना दिवस के दूसरे दिन की संध्या सर्वप्रथम अद्भुत, अलौकिक और अद्वितीय महानाट्य प्रस्तुति सम्राट विक्रमादित्य का मंचन हुआ। इस महानाट्य की प्रस्तुति उज्जैन की संस्था विशाला सांस्कृतिक एवं लोकहित समिति द्वारा दी गई, जिसका निर्देशन श्री संजीव मालवीय ने किया है। नाटक की भव्यता जहां कलाकारों के अभिनय, परिधान, संवाद और सेट कर रहा था, वहीं ऊंट, घोड़े, हाथी, पालकी, बग्गी इत्यादि ने भी इसकी आकर्षकता को बढ़ाया। तीन अलग स्टेज पर अत्याधुनिक ग्राफिक, आश्रम एवं जंगल के भव्य सेट के साथ ही भव्य महाकाल मंदिर के प्रतिरूप सेट और 150 कलाकारों ने महानाट्य को जीवंत बना दिया।
इस महानाट्य की प्रस्तुति का उद्देश्य मात्र प्रदर्शन नहीं, बल्कि आम नागरिकों को इस बात से परिचित कराना था कि हमारा मध्यप्रदेश प्राचीन काल से ही कितना महान रहा है। आज जब हम जनकल्याण, सुशासन और विकास की बात कर रहे हैं, तो यह प्रेरणा हमें सम्राट विक्रमादित्य जैसे महान इतिहास पुरुषों से ही प्राप्त हुई है, जो हमारे वैभवशाली अतीत के महानायक हैं। ऐसे विक्रमादित्य जो काल गणना, विवेकपूर्ण न्याय, शौर्य और महानता के लिए जाने जाते हैं।
महानाट्य के बारे में
श्रीराम और श्रीकृष्ण जैसे अवतार नायकों के बाद भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय नायक विक्रमादित्य ही हैं। भारत वर्ष के सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रसिद्ध पुरातन पुरुषों में विक्रमादित्य अग्रणी है। उनकी वीरता, देश को पराधीनता से मुक्त करने की उत्कृष्ट अभिलाषा राजनीतिक उपलब्धियों सैनिक अभियान और विजय यात्राएँ शासन की आदर्श अनोखी विवेकपूर्ण न्यायपद्धति, कला एवं साहित्य की उन्नति में उदार सहयोग तथा सहभागिता जैसे उदात्त गुणों ने भारत ही नहीं आस-पास और सुदूर देशों में भी उन्हें सदा के लिये प्रतिष्ठित कर दिया। शकों तथा यवनों ने भारत पर आक्रमण कर आंतक मचा रखा था। शक राजा महाबली, अर्थलोभी, पापी और दुष्ट थे, क्रूर हिंसक देश विरोधी शकों की उस दुर्दान्त, प्रलयंकारी काली छाया से विक्रमादित्य ने भारत को मुक्त कराया और 96 शक सामन्तों को पराजित कर उन्हें भारत से भागने पर विवश कर दिया था। शकों को खदेड़ कर ही शकारि और साहसांक की उपाधियाँ धारण की। आज भी विकमादित्य द्वारा 2082 वर्ष पूर्व प्रारम्भ विक्रम संवत् भारत वर्ष ही नहीं दुनिया का सर्वश्रेष्ठ काल गणना का आधार है। बेताल पच्चीसी और सिहांसन बत्तीसी में विक्रमादित्य के अद्भुत, विवेकपूर्ण न्याय, वीरता, शौर्य एवं महानता की कथाएँ सर्वविदित है। इसके दरबार में नवरत्न कालिदास, वररुचि, वराहमिहिर, क्षपणक, घटखर्पर, अमर सिंह, बेताल भट्ट, शंकु, धन्वन्तरि जैसे प्रसिद्ध महापुरुष सदा जनकल्याणकारी कार्यों में ही लगे रहते रहते थे। इस महानाट्य में विक्रमादित्य के जन्म से लेकर सम्राट बनने तक की सभी गाथाएँ अंकित की गई है।