मॉस्को। रूस के कजान शहर में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन शुरु हो गया है। ब्रिक्स में चीन, भारत, यूएई जैसे तमाम बड़े देश शामिल हैं। इस साल सबसे ज्यादा नजर रूस पर है। इसकी वजह है कि रूस सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है तो दूसरा और ज्यादा अहम कारण मॉस्को की अमेरिका और पश्चिम से तनातनी है। शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं को रूस बुलाना और फिर उनके साथ सफलता के साथ सम्मेलन का आयोजन कर पुतिन ने अमेरिका और उसके सहयोगियों को जमीन दिखाने का काम किया है। वजह ये है कि अमेरिका और पश्चिमी देश ने यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रूस को दुनिया में अलग-थलग करने की कोशिशें की है।


जानकारों के मुताबिक, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में विश्व नेताओं के साथ जिस तरह से पुतिन की तस्वीरें आई हैं, वह एक तरह से उनका पश्चिम के दबाव में ना आने का संकेत दे रही हैं। वह यूक्रेन मामले पर भी पश्चिम को ठेंगा दिखाते नजर आ रहे हैं। रूस ने यह संकेत दिया है कि वह एक लंबे युद्ध के लिए तैयार है, उसे प्रतिबंधों या अलगाव का डर दिखाकर नहीं रोका जा सकता है।


पुतिन ने फरवरी 2022 में रूसी सेना को यूक्रेन पर आक्रमण की इजाजत दी थी। इस फैसले के बाद कई चीजें एकदम बदल गईं। यूक्रेन पर हमले के विरोध में कनाडा, यूरोपीय संघ, जापान, न्यूजीलैंड, ताइवान, ब्रिटेन और अमेरिका ने रूसी बैंकों, तेल रिफाइनरियों और सैन्य निर्यात पर बैन लगा दिया। युद्ध बढ़ने के साथ इन प्रतिबंधों को और बढ़ा दिया और रूस को दुनिया में अकेला करने की कोशिश की।


मार्च 2023 में इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) ने यूक्रेन में युद्धापराधों का हवाला देते हुए पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया था। ये वैश्विक स्तर पर पुतिन के लिए झटका था। पुतिन पर इस तरह का दबाव पड़ा कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में 2023 में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हिस्सा लिया। पुतिन बीते साल भारत में जी20 शिखर सम्मेलन में भी शामिल नहीं हुए। इस सबके बीच ब्रिक्स के जरिए पुतिन ने दमदार वापसी की है और दुनिया को संदेश दिया है। 


मीडिया रिेपोर्ट में पुतिन ने यूक्रेन मामले पर उनको चौतरफा घेरने की कोशिश में लगे अमेरिका और पश्चिम को यह संदेश दिया है कि युद्ध और प्रतिबंधों के बावजूद रूस के पास अभी भी बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय साझेदार हैं जो मॉस्को के साथ व्यापार और बातचीत करने के इच्छुक हैं। पुतिन के लिए कजान शिखर सम्मेलन का प्रतीकात्मक और व्यावहारिक महत्व है। ये सम्मेलन दिखाएगा कि रूस के पास भारत, चीन और दूसरी उभरती शक्तियों का साथ है। ब्रिक्स समूह अब दुनिया की 45 फीसदी आबादी और जीडीपी के 25 फीसदी का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में इसका अपना एक महत्व है।