जाने प्रदोष व्रत की पूजा विधि और महत्व
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। ये भाद्रपद का दूसरा प्रदोष व्रत है। इस दिन गुरुवार पड़ने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जाता है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि इस खास दिन शिव जी के साथ मां पार्वती की पूजा करने से विशेष कृपा प्राप्ति होती है और जीवन की हर परेशानी समाप्त हो जाती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 07 सितंबर से शुरू हो रही है जो 08 सितंबर, गुरुवार की रात लगभग 9 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के कारण 08 सितंबर को प्रदोष व्रत रखा जाएगा।
अभिजित मुहूर्त - 8 सितंबर को 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 44 मिनट तक
रवि योग- दोपहर 01 बजकर 46 मिनट से लेकर 09 सितंबर को सुबह 06 बजकर 03 मिनट तक
सुकर्मा योग- रात 09 बजकर 41 मिनट से शुरू हो रहा है।
पूजन विधि : प्रदोष व्रत के दिन देवी पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय और नंदी के साथ भगवान शिव की पूजा की जाती है।इसके बाद एक अनुष्ठान होता है जहां भगवान शिव की पूजा की जाती है। आप चाहे तो शिवलिंग का पूजन भी कर सकते हैं।शिवलिंग को दूध, दही और घी जैसे पवित्र पदार्थों से स्नान कराया जाता है। इसके बाद जल से स्नान करा दें।भगवान को फूल, माला के साथ बेलपत्र, धतूरा आदि चढ़ा दें।अब भोग लगा दें।भोग लगाने के बाद धूप-दीप जलाकर भगवान शिव के मंत्र, चालीसा और व्रत कथा का पाठ कर लें।अंत में शिव आरती कर लें।फिर भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
महत्व : माना जाता है कि गुरु प्रदोष का व्रत रखने से व्यक्ति को रोग, ग्रह दोष से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही हर तरह के कष्टों से निजात मिल जाती है, साथ ही इस व्रत के पुण्य प्रभाव से नि:संतान लोगों को पुत्र भी प्राप्त होता है।