बीजिंग: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान युद्ध के मुहाने पर हैं। आशंका है कि परमाणु शक्ति वाले दोनों देश जंग में फंस सकते हैं। लिहाजा पाकिस्तान ने अपने ‘हर मौसम के साथी’ चीन का समर्थन हासिल करने के लिए हाथ पैर मारना शुरू कर दिया है। चीन डिप्लोमेसी के स्तर पर और शुरूआती सैन्य मदद में पाकिस्तान की मदद भी कर रहा है। चीन ने यूनाइटेड नेशंस में पाकिस्तान को मदद दी है और पाकिस्तान का दावा है की चीन ने आपातकाली स्थिति में पीएल-15 मिसाइलों की भी डिलीवरी की है। लेकिन ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन पाकिस्तान की इससे ज्यादा मदद करने की नहीं सोच रहा है। पाकिस्तान आर्थिक तौर पर चीन पर काफी ज्यादा निर्भर है, लेकिन बदलते जियो-पॉलिटिकल हालातों में भारत और चीन के रिश्ते भी बदल गये हैं। गलवान घाटी झड़प के बाद अब दोनों देशों के संबंध सामान्य हो रहे हैं और दोनों देश मजबूत व्यापारिक संबंध बनाने की तरफ बढ़ चुके हैं। लिहाजा एक संभावना बन रही है कि चीन, युद्ध के हालात में पाकिस्तान से एक समुचित दूरी बनाकर रखे।
पहलगाम आतंकी हमले के दो दिनों के बाद जब भारत ने जी-20 के देशों के डिप्लोमेट्स को हमलों की जानकारी देने के लिए बुलाया था, उसमें चीन को भी बुलाया गया था। जबकि इससे पहले 2016 के उरी आतंकी हमले के बाद भी चीनी दूत नई दिल्ली में भारतीय विदेश मंत्रालय की ब्रीफिंग का हिस्सा नहीं थे। वे 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के बाद ब्रीफिंग में शामिल हुए थे। इस बार भी 100 से ज्यादा विदेशी दूत, जिनमें यूनाइटेड नेशंस के वीटो पावर वाले P-5 देश के प्रतिनिधि भी शामिल थे, वो भारतीय विदेश मंत्रालय की ब्रीफिंग में शामिल हुए थे। चीनी डिप्लोमेट ने भी इसमें हिस्सा लिया था। भारतीय विदेश मंत्री पिछले कुछ महीनों में कई बार चीन के साथ संबंधों के ‘सकारात्मक’ दिशा में बढ़ने की बात कर चुके हैं। भारत में चीनी दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग ने भी एस. जयशंकर की बातों से सहमति जताई थी और जब पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने एक पॉडकास्ट में चीन भारत संबंधों की महत्ता के बारे में बात की थी, तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने इसकी जमकर तारीफ की थी।