नई दिल्ली: पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था से जुड़े पहलू डराने वाले हैं। कर्ज, अक्षमता और खतरनाक निर्भरता उसके पांव बन गए हैं। यह बार-बार डिफॉल्ट के कगार पर पहुंचता है। हाल में इस्लामाबाद ने आईएमएफ के एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (ईएफएफ) के तहत 1 अरब डॉलर का नया कर्ज हासिल किया है। यह 7 अरब डॉलर के व्यापक पैकेज का हिस्सा है। 1950 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में शामिल होने के बाद से देश ने कम से कम 25 कर्ज कार्यक्रमों में प्रवेश किया है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की कहानी एक ऐसे देश की है जो उधार के पैसे और उधार के समय पर चलता है। आखिर में दोनों खत्म हो जाते हैं। भारत ने पाकिस्तान के इस पैटर्न पर कड़ी नजर रखी है। ‘ऑक्सीजन’ के तौर पर बार-बार मिलने वाले बेलआउट पर उसने सवाल उठाए हैं। आईएमएफ इस बार खाली चेक नहीं लिख रहा है। उसने पाकिस्तान के लिए अब तक की सबसे कड़ी शर्तें रखी हैं।
पाकिस्तान का आर्थिक संकट कोई दुर्घटना नहीं है। स्वतंत्रता के बाद का वादा जल्द ही पुराने कुप्रबंधन में बदल गया। सेना पर बेहिसाब खर्च, खराब योजना और आयात-केंद्रित विकास मॉडल के जहरीले मिक्सचर ने इसके राजकोषीय मूल को खोखला और संस्थानों को कमजोर कर दिया है।