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शराब ठेके के एवज में सरकारी खजाने में 25.50 करोड़ रुपए की एफड जमा की जानी थी, लेकिन ये राशि चार साल तक विभागीय फाइलों से गायब रही। की शराब दुकानों का ठेका लेने वाले ठेकेदारों ने एफडी तो बनवाई, लेकिन आबकारी विभाग को कभी सौंपी ही नहीं।

इस दौरान एफडी पर मिलने वाला ब्याज ठेकेदार खाते रहे और तत्कालीन आबकारी अधिकारियों ने कोई आपत्ति नहीं जताई। अब जब मौजूदा अफसरों ने जांच की तब जाकर ये एफडी विभाग को मिली है। बैंक अफसरों के मुताबिक, 25.50 करोड़ रुपए की एफडी पर सालाना करीब डेढ़ करोड़ रुपए ब्याज बनता है। ऐसे में चार साल का ब्याज तो ठेकेदार पहले ही खा चुके हैं।

क्या गड़बड़ी हुई? : वर्ष 2021-22 में जबलपुर शहर के उत्तर और दक्षिण समूह की शराब दुकानों का ठेका मां वैष्णो इंटरप्राइजेस के नाम पर दिया गया था। इसके दो साझेदार थे– आशीष शिवहरे और सूरज गुप्ता। नियमानुसार उन्हें 25.50 करोड़ रुपए की एफडीआर (फिक्स्ड डिपॉजिट रिसीट) आबकारी विभाग के कार्यालय में जमा करनी थी। इस रकम की एफडी तो बैंक ऑफ महाराष्ट्र की तिलहरी शाखा, जबलपुर से बनवाई गई, लेकिन विभाग को कभी सौंपी नहीं गई। इसके बावजूद ठेका चलाया गया और किसी अधिकारी ने इसकी जांच तक नहीं की।

वर्तमान में जबलपुर में पदस्थ सहायक आबकारी आयुक्त संजीव कुमार दुबे ने इस मामले की परतें खोलीं। उन्होंने बैंक से जानकारी जुटाई और ठेकेदारों को नोटिस जारी किया। इसके बाद ही 26 मई 2025 को ठेकेदारों ने 25.50 करोड़ की एफडी सरकारी खजाने में जमा की। एफडी की तारीखें बताती हैं कि यह राशि 16 जुलाई 2021 को ही बन चुकी थी। यानी चार साल तक यह फाइनेंशियल डॉक्युमेंट विभागीय सिस्टम से बाहर रहा।

विधानसभा में उठा मामला, फिर भी 2 साल दबाए रखा

वर्ष 2023 में विधायक प्रदीप पटेल ने इस घोटाले को विधानसभा में उठाया था। आबकारी विभाग ने जवाब में स्वीकार किया था कि एफडी कार्यालय को प्राप्त नहीं हुई है। इसके बाद भी दो साल तक मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। सूत्रों के मुताबिक, तत्कालीन असिस्टेंट कमिश्नर सत्यनारायण दुबे और रविंद्र मलिक पुरी की भूमिका इस मामले में संदिग्ध मानी जा रही है। इन दोनों अधिकारियों ने ठेके के दस्तावेजों की जांच में लापरवाही बरती और एफडी की अनुपस्थिति के बावजूद ठेका मंजूर किया।