प्रदेश में वोटर्स के लिए एसआईआर की प्रक्रिया शुरू कराने के बीच मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी भोपाल ने सभी 16 नगर निगमों के आयुक्तों के लिए भी जिम्मेदारी तय करने का फैसला किया है। इसके लिए चुनाव आयोग को यह प्रस्ताव भेजा जा रहा है कि नगर निगम आयुक्तों को एडिशनल इलेक्शन ऑफिसर की जिम्मेदारी सौंपी जाए ताकि वे अपने शहरी क्षेत्र में चुनाव संबंधी व्यवस्थाओं के लिए जिम्मेदार रहें और खुद एक्शन लेकर कलेक्टर और जिला निर्वाचन अधिकारी को रिपोर्ट देते रहें।
सात फरवरी 2026 तक होने वाली एसआईआर को लेकर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय सभी जिलों के कलेक्टरों के वोटर लिस्ट संबंधी काम की बारीकी से मॉनिटरिंग करने जा रहा है। कलेक्टरों से कहा गया है कि जिन बड़े नगर निगमों में आईएएस और राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आयुक्त के रूप में पदस्थ हैं वहां के अफसरों की चुनावी जिम्मेदारी बढ़ाने को लेकर प्रस्ताव विचाराधीन है।
आयोग ने संकेत दिए हैं कि ऐसे अफसरों को एडिशनल इलेक्शन ऑफिसर की जिम्मेदारी सौंप दी जाए ताकि उन पर भी चुनावी व्यवस्था दुरुस्त रखने की जवाबदेही बढ़े। अभी यह प्रस्ताव आयोग की ओर से फाइनल नहीं हुआ है पर माना जा रहा है कि जल्दी ही इस पर अंतिम निर्णय हो सकता है और आयोग की अनुमति से प्रदेश के 16 नगर निगमों के आयुक्त एडिशनल इलेक्शन ऑफिसर बन सकेंगे।
वोटर्स के एक ही मकान में रहने वाली समस्या सुलझेगी मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी संजीव झा और उनके सहयोगी संयुक्त मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी आरपीएस जादौन ने इसके संकेत बुधवार को हुई कलेक्टरों, कमिश्नरों की वीडियो कांफ्रेंसिंग में दिए हैं। उन्होंने कहा है कि मौजूदा स्थिति को देखें तो कांग्रेस ने बिहार में एक ही मकान में 15 या अधिक लोगों के होने तथा शून्य नंबर वाले मकान में लोगों के निवास करने की बात कही है। मंगलवार को एमपी कांग्रेस की ओर से भी इसका सुझाव कांग्रेस के जेपी धनोपिया ने दिया है और कहा है कि शून्य नंबर वाले मकान नहीं होने चाहिए। मकानों की नंबरिंग के आधार पर वोटर लिस्ट तैयार होना चाहिए।
पीएम आवास जैसे मकानों में बगैर नम्बर की स्थिति होगी खत्म कलेक्टरों से कहा गया है कि इसे देखते हुए यह तय किया गया है कि नगर निगम आयुक्तों को इलेक्शन ऑफिसर नॉमिनेट कराया जाए ताकि वे अपनी टीम के साथ ऐसे आवासों को चिन्हित करें जो बन तो गए हैं लेकिन मकान नंबर उनमें नहीं डाला है।
ऐसे आवासों में भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर समेत अन्य शहरों में बनाए गए पीएम आवास हैं जिनमें अभी आवंटन नहीं होने के कारण मकान नंबर नहीं डाले गए हैं लेकिन लोग वहां रह रहे हैं और ऐसे हालातों में बीएलओ उन मकानों का नंबर जीरो डाल देते हैं। इससे ही विवाद की स्थिति बनती है।



