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आदमपुर खंती का जो कचरा अब तक पर्यावरण और सेहत के लिए खतरा था, वही अब भविष्य की ऊर्जा बनेगा। दरअसल, भोपाल नगर निगम करीब 250 करोड़ रु. की लागत से ऐसा प्लांट लगाने जा रहा है, जो हर दिन 50 टन कचरे से 5 टन ग्रीन हाइड्रोजन बनाएगा। साथ ही कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2)भी बनेगी। यह भी ईंधन बनाने में काम आएगी। यानी ये सिर्फ सफाई का मॉडल नहीं, बल्कि ग्रीन एनर्जी मिशन की दिशा में ठोस कदम भी साबित हो सकता है।

इसके लिए निगम एक निजी कंपनी को डेढ़ एकड़ जमीन देगा। जो कंपनी प्लांट लगाएगी, वह रॉयल्टी के रूप में निगम को कमाई में से हिस्सा भी देगी। प्रयोग सफल रहा तो ये नगर निगमों की वित्तीय आत्मनिर्भरता का भी रास्ता खोल सकता है। अभी आदमपुर खंती में रोज 800 टन कचरा पहुंचता है। इसमें सूखा कचरा करीब 500 टन होता है।

कैसे बनेगी कचरे से हाइड्रोजन

 कचरे को पहले छोटे टुकड़ों में काटा जाएगा, फिर सीमित ऑक्सीजन के साथ और अत्यधिक तापमान पर गर्म किया जाएगा। इससे कचरा प्लाज्मा रूप में बदल जाता है, जो बाद में हाइड्रोजन और ग्रीन कार्बन डाई ऑक्साइड में परिवर्तित होता है। धातु, कांच या मलबे जैसे अकार्बनिक अंश फिल्टर हो जाते हैं।

भोपाल में रोज 50 टन कचरे से बनेगी ग्रीन हाइड्रोजन, नगर निगम 250 करोड़ से लगाएगा प्लांट, ईंधन के रूप में गैस बेचकर कमाई भी करेगा

ईंधन से लेकर उद्योगों तक में हाेता है ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग

बिजली बनाने फ्यूल सेल में इस्तेमाल किया जाता है। {गैस टर्बाइन में भी को-फ्यूल के रूप में मिलाते हैं, जिससे कार्बन उत्सर्जन घटता है। {सेल वाहनों (जैसे बसें, ट्रक, ट्रेन) में पेट्रोल या डीजल की जगह लिया जाता है। {स्टील, सीमेंट, केमिकल इंडस्ट्री में इसे हीट या रिड्यूसिंग एजेंट की तरह इस्तेमाल किया जाता है। {अमोनिया उत्पादन (खाद उद्योग) में यह नैचुरल गैस से बने हाइड्रोजन का विकल्प है। {अतिरिक्त सौर या पवन ऊर्जा को हाइड्रोजन में बदल स्टोर किया जा सकता है, ताकि बाद में बिजली बनाई जा सके।

CO2 का उपयोग… CO₂2 को ग्रीन हाइड्रोजन के साथ मिलाकर सिंथेटिक ईंधन (जैसे मैथेनॉल, एविएशन फ्यूल) बनाया जा सकता है। {पेय पदार्थों में कार्बोनेशन के लिए व पौधों की ग्रोथ बढ़ाने के लिए नियंत्रित मात्रा में ग्रीन CO2 का उपयोग होता है।{यूरिया, प्लास्टिक या सॉल्वेंट जैसी चीजें भी बनाई जाती हैं।

बिजली उत्पादन, वाहनों में प्रयोग ग्रीन हाइड्रोजन गैस भविष्य का ईंधन है। इससे बिजली उत्पादन, फ्यूल सेल और भारी वाहन चलाने तक का काम होता है। यदि भोपाल का प्रयोग सफल रहा तो अन्य निकायों में भी यह मॉडल लागू किया जा सकता है। यह प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी घटाएगा।

भविष्य में क्षमता बढ़ा भी सकते हैं कचरे से हाइड्रोजन बनाने का प्लांट लगाने को लेकर प्रस्ताव मंगाए हैं। एक कंपनी को पहले चरण में 50 टन कचरे से प्रतिदिन हाइड्रोजन बनाने का प्रस्ताव दिया है। भविष्य में कचरे की लिमिट को बढ़ाया भी जा सकता है। -उदित गर्ग, प्रभारी अधीक्षण यंत्री, नगर निगम भोपाल