नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री द्वय डॉ मनमोहन सिंह और नरसिम्हा राव के कामों की मोदी सरकार ने जमकर तारीफ की है। वो भी देश की सबसे बड़ी अदालत के सामने। सुप्रीम कोर्ट में देश के पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और उनके तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह की प्रशंसा की है। मोदी सरकार ने देश की सबसे बड़ी अदालत में 1991 में लाइसेंस राज को खत्म करने और आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत करने के लिए दोनों ही दिग्गज कांग्रेसी नेताओं की प्रशंसा की है। आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने हाल ही में नरसिम्हा राव को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्नसे भी नवाजा है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली नौ जजों की पीठ को बताया कि अधिनियम के अनुसार कई महत्वपूर्ण उद्योगों के विकास और विनियमन तथा पूरे देश पर प्रभाव डालने वाली गतिविधियों को केंद्र के नियंत्रण में लाना आवश्यक है।,कोविड-19 का उदाहरण देते हुए मेहता ने कहा कि सरकार राष्ट्रीय हित में अपनी नियामक शक्ति का उपयोग कर सकती है, जैसा कि उसने सैनिटाइजर के निर्माण के लिए अधिसूचित मूल्य पर इथेनॉल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के आदेश जारी करके किया था। नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह द्वारा शुरू किए गए आर्थिक सुधारों के बाद कंपनी कानून और एमआरटीपी अधिनियम सहित कई कानूनों को उदार बनाया गया। इनके बाद अगले तीन दशकों में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेतृत्व वाली सरकारों ने उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 में संशोधन करना आवश्यक नहीं समझा। वह पीठ के एक सवाल का जवाब दे रहे थे जिसमें जस्टिस हृषिकेश रॉय, एएस ओका, बीवी नागरत्ना, जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्ज्वल भुइयां, सतीश सी शर्मा और ऑगस्टीन जी मसीह भी शामिल थे। पीठ ने आईडीआरए, 1951 की तीखी आलोचना करते हुए इसे पुरातनपंथी बताया था। नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन, विनिर्माण, आपूर्ति और विनियमन के संबंध में केंद्र और राज्यों की शक्तियों के अधिव्याप्त होने के मुद्दे की पड़ताल कर रही है। सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा राज्यों के खिलाफ फैसला सुनाए जाने के बाद पीठ के समक्ष कई याचिकाएं आईं।वर्ष 1997 में सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा यह निर्णय दिए जाने के बाद कि केंद्र के पास औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन पर नियामक शक्ति होगी, साल 2010 में यह मामला नौ न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा गया था।