चैन से सोना है तो 'सोने' को कहें ना
सोने की चमक सभी को आकर्षित करती है। इसी आकर्षण के कारण लोग अधिक से अधिक सोना खरीदने चाहते हैं। यह चाहत तब और भी बढ़ जाती है जब सोने की कीमत में अचानक थोड़ी गिरावट आती है। लोग इस मौका का लाभ उठाना चाहते हैं। आज कल बाजार में यही स्थिति है क्योंकि सोने की कीमत कमी आयी है। आइए जानें सोने के बारे में हमारे शास्त्रों क्या कहा गया है। ज्यादातर पौराणिक ग्रंथों में इस बात को कई तरह से कहा गया है कि सोने की खरीदारी से जितनी खुशी नहीं होती है उससे अधिक चिंता बढ़ जाती है। हमेशा यह चिंता सताती है कि सोना चोरी न हो जाए। इसे कैसा संभालकर रखें। पड़ोसी की नज़र सोने के गहनों पर नहीं जाए, क्योंकि नज़र लग जाएगी।यह भी कहा जाता है कि किसी अवसर पर सोने के गहने पहन लें तो हमेशा इसी पर ध्यान रहता है कि कहीं गिर न जाए, कोई खींच न ले। इस चिंता के कारण उत्सव का पूरा आनंद भी नहीं उठा पाते हैं।
सोना सिर्फ आपको चिंतित ही नहीं करता है बल्कि आपकी सोच और व्यवहार को भी प्रभावित करता है। इससे अभिमान भी जन्म लेता है। यही कारण है कि रहीम ने लिखा है 'कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय। वा खाये बौराय नर, वा पाये बौराय।।' इस दोहे में रहीम ने दो बार कनक शब्द का प्रयोग किया है। एक कनक धतूरे के लिए और दूसरा सोना के लिए। रहीम ने कहा है कि सोने का नशा धतूरे भी ज्यादा होता है। धतूरा खाने के बाद आदमी बौरा जाता है लेकिन सोने का नशा इतना तेज होता है कि इसे प्राप्त कर लेने मात्र से इंसान बौरा जाता है। पुराणों में कथा है कि कलियुग का प्रवेश भी सोने के माध्यम से हुआ था। कलियुग सोने में निवास करता है इसलिए सोने के कारण विवाद और रिश्तों में दूरियां तक आ जाती है। साधु पुरूष कहते हैं कि सोना चिंता का बड़ा कारण है। जब आप इसे पाने की सोचने लगते हैं तभी से चिंता आपके ऊपर हावी होने लगती है।