वाशिंगटन । पूरी दुनिया में इन दिनों डी-ग्लोबलाइजेशन की खबरें चल रही हैं। दुनिया ऐसी रिपोर्टों से भरी पड़ी है कि वर्ल्ड का डी-वैश्वीकरण हो रहा है। लेकिन दुनिया में अभी ग्लोबलाइजेशन खत्म नहीं हुआ है। लेकिन बस एक नया आकार ले लिया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप शुरुआती डी-ग्लोबलाइजर थे। ट्रंप ने ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप से पीछे हटते हुए संरक्षणवादी शुल्क लगाकर और चीन के साथ व्यापार को कम करके ग्लोबलाइजेशन को नुकसान पहुंचाया। इससे चीन के साथ कारोबार पर अंकुश लगा।
इसके बाद में अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन ने चीन के हाई-टेक सामानों की बिक्री पर कड़े प्रतिबंध लगाए। जो बाइडन ने ग्रीन टेक्नोलॉजी और माइक्रोचिप्स में अमेरिकी निवेश को शुरू करने के लिए 624 बिलियन डॉलर का अब तक का सबसे बड़ा सब्सिडी कानून बनाया। चीन पर अंकुश लगाने से कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने कारोबार को चीन से अन्य कम मजदूरी वाले देशों में स्थानांतरित कर दिया। इन घटनाओं को रेशोरिंग और फ्रेंडशोरिंग कहा जाता है।
भारत में, अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया का कहना है कि हाल के वर्षों में करीब 3 हजार टैरिफ लाइनों पर आयात शुल्क बढ़ाए गए हैं। इसमें मुख्य रूप से सस्ते चीनी सामानों को आयात से बाहर रखने के लिए ऐसा किया गया है। भारत चिप निर्माण संयंत्रों के लिए 50 फीसदी तक की भारी सब्सिडी की पेशकश कर रहा है। इसका उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन 14 विशिष्ट क्षेत्रों में नए उद्योगों के लिए लगभग 2 ट्रिलियन रुपये की सब्सिडी के साथ ही टैरिफ सुरक्षा प्रदान करता है।