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इस्लामाबाद: डोनाल्ड ट्रंप को शांति का नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया है। नोबेल शांति पुरस्कार 2025 इस बार वेनेजुएला की लोकतंत्र समर्थक नेता मारिया कोरिना मचाडो को दिया गया है। इस खबर से दो लोग जो सबसे ज्यादा दुखी होंगे, उनमें एक खुद डोनाल्ड ट्रंप होंगे और दूसरा पाकिस्तान का आर्मी चीफ मुल्ला असीम मुनीर होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति के गुलाम इस पाकिस्तान जनरल ने उन्हें नोबेल पुरस्कार दिलवाने के लिए जमकर झूठ बोला और दावा कर दिया कि ट्रंप ने ही भारत-पाकिस्तान के बीच मई महीने में युद्धविराम करवाया था, जिसकी अब पोल खुल गई है।

नोबेल पुरस्कार कमेटी ने पाकिस्तान की इस दलील को खारिज कर दिया कि डोनाल्ड ट्रंप ने मध्यस्थता करवाई थी। दरअसल, पाकिस्तान ने डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट कर दुनिया को चौंका दिया था। इस नॉमिनेशन के पीछे पाकिस्तान ने तर्क दिया था कि मई 2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए चार दिन के संघर्ष को ट्रंप ने रूकवाने का काम किया। डोनाल्ड ट्रंप ने इसके बाद दर्जनों बार दावा किया कि उन्होंने ही भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम करवाया है।

नोबेल समिति का फैसला और पाकिस्तान की किरकिरी
आज जैसे ही नोबेल समिति ने 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार वेनेज़ुएला की लोकतंत्र समर्थक नेता मारिया कोरीना माचाडो को देने की घोषणा की तो पाकिस्तान की उम्मीदों पर पानी फिर गया। क्योंकि अगर ट्रंप को नोबेल मिल जाता तो आज से वो जीवन भर हल्ला मचाता रहता कि उसने ही अमेरिकी राष्ट्रपति को नोबेल पुरस्कार दिलवाया है। इसके अलावा वो इसके जरिए ये साबित करने की कोशिश करता कि ट्रंप ने ही भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम करवाया है। यानि अब पाकिस्तान की नौटंकी पर ताला लग गया है। वो अब हो-हल्ला नहीं मचाएगा

ट्रंप को शांति का नोबेल पुरस्कार ना मिलना नोबेल पुरस्कार की गरिमा की भी रक्षा है। अगर ट्रंप को नोबेल पुरस्कार मिलता तो ये एक ऐसे ट्रेंड को जन्म देता, जहां ताकतवर नेता धमकाकर नोबेल हासिल करते और इस पुरस्कार की सारी गरिमा, प्रतिष्ठा हमेशा के लिए खत्म हो जाती। इसीलिए ट्रंप को नोबेल नहीं मिलना पाकिस्तान के लिए कूटनीतिक तमाचा है और भविष्य में ऐसे नेताओं को रोकेगा, जो गुलामों की तरह, आर्थिक और राजनीतिक लाभ के लिए ताकतवर नेताओं को मक्खन लगाने की कोशिश करेगा और नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट करेगा।