पेरिस: फ्रांस की एयरोस्पेस कंपनी डसॉल्ट ने 300वां राफेल फाइटर जेट बना लिया है। ये एक शानदार उपलब्धि है और फ्रांस के लिए गर्व की बात है। राफेल वो फाइटर जेट है, जिसने फ्रांस को अमेरिका और यूरोपीय देशों से अलग अपनी संप्रभुता बनाए रखने में मदद की है। अब जबकि यूरोपीय देशों को अहसास हो रहा है कि अपनी सुरक्षा को लेकर अमेरिका पर हद से ज्यादा निर्भरता बहुत बड़ी भूल थी, तो अब उन्हें अपनी रणनीतिक भूल का अहसास हो रहा है। लेकिन फ्रांस अब अपने यूरोपीय साझेदारों को कह रहा है कि उसने तो पहले ही चेतावनी दे दी थी।
इतिहास गवाह है कि फ्रांस को ना सिर्फ अमेरिका पर, बल्कि अपने यूरोपीय साझेदारों पर भी विश्वास नहीं था। इसीलिए 1960 में फ्रांस ने खुद को पैनविया टॉरनेडो एयरक्राफ्ट प्रोजेक्ट से अलग कर लिया, जिसे उसने ब्रिटेन के साथ शुरू किया था। ये कार्यक्रम लड़ाकू विमान को बनाने को लेकर था। इसके बाद ब्रिटेन ने 1969 में जर्मनी और इटली के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया। इसके बाद P-01 की पहली आधिकारिक उड़ान 14 अगस्त 1974 को दर्ज की गई।
ब्रिटेन से अलग होकर फ्रांस ने अपनी राह खुद चुनी और मिराज प्रोजेक्ट को लॉन्च किया। डसॉल्ट ने मिराज फाइटर जेट बनाने का काम शुरू किया, जिसकी पहली उड़ान 1967 में हुई। यही कहानी दो दशक बाद फिर उस वक्त दोहराई गई, जब यूरोप ने मिलकर यूरोफाइटर टायफून बनाने की ठानी। फ्रांस को इसमें 46% हिस्सेदारी चाहिए थी ताकि वह इस प्रोजेक्ट को अपने कंट्रोल में रखे। लेकिन बाकी चार देशों ब्रिटेन, जर्मनी, इटली और स्पेन को इसपर आपत्ति थी। इसीलिए फ्रांस ने 1985 में प्रोजेक्ट छोड़ दिया और खुद का फाइटर जेट बनाने का फैसला किया। और यहीं से राफेल फाइटर जेट का सफर शुरू हुआ।
डसॉल्ट एविएशन ने 300वां राफेल एयरफ्रेम तैयार कर एक ऐतिहासिक मुकाम हासिल कर लिया है। इस मौके पर कंपनी ने इसे अपने ऑपरेशन, इंडस्ट्री और राफेल फाइटर जेट के कारोबार के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि करार दिया है। राफेल फाइटर जेट की पहली यूनिट साल 2004 में फ्रेंच नेवी और 2006 में फ्रेंच एयर फोर्स में शामिल हुईं। सबसे खास बात ये है कि राफेल फाइटर जेट को पूरी तरह से फ्रांस ने ही तैयार किया है। इसका इंजन से लेकर रडार तक फ्रांस ने ही तैयार किया है। वो इस फाइटर जेट को लेकर किसी भी और देश पर निर्भर नहीं है। हालांकि शुरुआती वर्षों में जब राफेल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में मुश्किलें आईं और काफी ज्यादा कीमत की वजह से इसकी आलोचना भी की गई, लेकिन आज हालात बिल्कुल बदल चुके हैं। भारतीय वायुसेना के खरीदने के बाद पिछले 10 सालों में करीब 8 देशों से 300 राफेल के ऑर्डर मिल चुके हैं।