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तेहरान/वॉशिंगटन: अमेरिका ने भारत को झटका देते हुए ईरान के चाबहार बंदरगाह को लेकर दी गई 2018 की प्रतिबंध छूट वापस ले ली है। इसे 29 सितम्बर से दोबारा लागू किए जाएगा। वॉशिंगटन के इस कदम से चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुंच पर खतरा मंडराने लगा है। अमेरिकी विदेश विभाग ने मंगलवार को जारी एक बयान में इसे ईरानी शासन को अलग-थलग करने की राष्ट्रपति ट्रंप की अधिकतम दबाव नीति के तहत उठाया गया कदम उठाया है। इस घोषणा का मतलब है कि जो कंपनी या व्यक्ति चाबहार बंदरगाह के संचालन में शामिल होंगे, उनके ऊपर अमेरिका प्रतिबंध लगाएगा।

अमेरिकी विदेश विभाग के बयान में कहा गया है कि ‘विदेश मंत्री ने अफगानिस्तान पुनर्निर्माण सहायता और आर्थिक विकास के लिए ईरान स्वतंत्रता एवं प्रसार विरोधी अधिनियम (IFCA) के तहत 2018 में जारी प्रतिबंध अपवाद को रद्द कर दिया है, जो 29 सितम्बर 2025 से प्रभावी होगा।’ इस कदम से बंदरगाह पर भारतीय संचालकों पर अमेरिकी प्रतिबंध लग सकता है। चाबहार बंदरगाह का बेहेश्टी टर्मिनल 2018 से इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड के माध्यम से भारत के ऑपरेशन कंट्रोल में है।

चाबहार भारत के लिए क्यों है जरूरी?

ईरान का ये बंदरगाह भारत को पाकिस्तान को साइडलाइन करके अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने में मदद करता है। नई दिल्ली ने बंदरगाह के बुनियादी ढांचे के विकास में 12 करोड़ डॉलर से अधिक का निवेश किया है। इस टर्मिनल की क्षमता को 1 लाख से बढ़ाकर 5 लाख TEU करने और 2026 तक इसे ईरान के रेलवे नेटवर्क से जोड़ने की योजना पर काम चल रहा है। लेकिन चाबहार प्रतिबंधों से छूट खत्म करके अमेरिका ने ईरानी परियोजना में शामिल अंतरराष्ट्रीय हितधारकों के लिए माहौल प्रतिकूल कर दिया है।

अमेरिकी फैसले का भारत पर असर

चाबहार प्रतिबंध छूट को वापस लेने का फैसला भारत के लिए आर्थिक और कूटनीतिक दोनों तरह की चुनौतियां लेकर आया है। चाबहार में काम करने वाली भारतीय कंपनियों को अब अमेरिकी दंड का सामना करना पड़ेगा, जिसका असर कार्गो संचालन, निवेश योजनाओं और भविष्य के विस्तार पर पड़ सकता है।

यह विकास भारत की अमेरिका के साथ अपनी बढ़ती रणनीतिक साझेदारी और ईरान के साथ दीर्घकालिक व्यापारिक और रणनीतिक संबंदों के बीच संतुलन बनाने की क्षमता का भी परीक्षण करता है। रणनीतिक रूप से भी चाबहार बहुत महत्वपूर्ण है और भारत के क्षेत्रीय बुनियादी ढांचे में एक महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है। यह बंदरगाह पाकिस्तान में चीन समर्थित ग्वादर बंदरगाह का जवाब भी है, जिससे क्षेत्रीय व्यापार और समुद्री रणनीतिक में भारत की स्थिति मजबूत होती है।