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हेलसिंकी: फिनलैंड के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर स्टब ने एक महीने में दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भारत को लेकर नसीहत दी है। उन्होंने एक बार फिर से अमेरिकी राष्ट्रपति को भारत से संबंध बिगाड़ने को लेकर सावधान किया है। फिनलैंड के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर स्टब ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा है कि वो भारत को चीन और रूस के साथ नहीं रखते हैं। उन्होंने चीन और रूस को एक साथ रखा और उन्हें बहुत हद तक एक समान बताया, लेकिन उन्होंने कहा कि भारत, चीन और रूस के जैसा नहीं है, इसीलिए पश्चिमी देशों को भारत के साथ और मजबूती से संबंध बनाने चाहिए।

स्टब ने एक इंटरव्यू में कहा कि "वहां एक बहु-पक्षीय विदेश नीति अपनाई जा रही है। मुझे लगता है कि रूस और चीन के बीच सीधा संबंध है। 1990 के दशक की शुरुआत में चीन और रूस की अर्थव्यवस्थाएं समान आकार की थीं, लेकिन अब चीन दस गुना से भी ज्यादा बड़ा है। और वास्तव में, तेल की खरीद, गैस की खरीद और तकनीकी आदान-प्रदान के जरिए, रूस को युद्ध छेड़ने का मौका मिलता है, इसलिए दोनों देशों के बीच बहुत गहरा संबंध है।"

भारत को लेकर यूरोप और अमेरिका को नसीहत
इसके अलावा उन्होंने कहा कि "और हां, भारत यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका का भी बहुत करीबी सहयोगी है, इसलिए मैं उन्हें एक ही श्रेणी में नहीं रखूंगा, लेकिन भारत स्पष्ट रूप से एक उभरती हुई महाशक्ति है। इसकी जनसांख्यिकी मजबूत है। इसकी अर्थव्यवस्था इसके पक्ष में है और मैं हमेशा यह तर्क देता हूं, कि पश्चिमी देशों के लिए भारत के साथ जुड़ना और उनके साथ काम करना बहुत जरूरी है।" यह पहली बार नहीं है जब फिनलैंड के राष्ट्रपति स्टब ने भारत के साथ ज्यादा सहयोगात्मक रुख का संकेत दिया है। उन्होंने तियानजिन में एससीओ शिखर सम्मेलन में भी भाग लिया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भाग लिया था। इस कार्यक्रम में मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग के बीच की मुलाकात ने पश्चिमी देशों और दुनिया भर के एक्सपर्ट्स को चौंका दिया था।
स्टब ने इंटरव्यू के दौरान संकेत दिया कि एससीओ में उन्होंने जो कुछ भी देखा, वह लंबे समय से चल रहा था। उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ की एकता को कमजोर करने की कोशिश की गई है और "विशेष रूप से भारत जैसे ग्लोबल साउथ के साथ ज्यादा सम्मानजनक विदेश नीति" रखे बिना वे (पश्चिमी देश) यह खेल हार जाएंगे। स्टब ने माना कि SCO जैसे मंच पश्चिमी देशों को यह याद दिलाने के लिए हैं कि ग्लोबल साउथ, खासकर भारत के साथ गरिमापूर्ण, सम्मानजनक और सक्रिय कूटनीति के बिना पश्चिम अपनी पकड़ ढीली कर देगा और मौजूदा वैश्विक व्यवस्था धीरे-धीरे टूट जाएगी।