भोपाल। मध्य प्रदेश का बजट करीब 3.65 लाख करोड़ रुपये का है। इसका लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा केवल वेतन-भत्ते, पेंशन, कर्ज और ब्याज की अदायगी पर व्यय हो रहा है। सरकार एक लाख पदों पर भर्ती करने जा रही है। इससे अनुमान है कि यह खर्च और बढ़ जाएगा।
महंगाई भत्ता, वार्षिक वेतनवृद्धि और पारिश्रमिक में वृद्धि से भी स्थापना व्यय बढ़ेगा। उधर, सरकार पर कर्ज का बोझ भी बढ़ता जा रहा है। यह वित्तीय वर्ष 2024-25 में सवा चार लाख करोड़ रुपये के आसपास हो गया है। हाल ही में छह हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया गया है।
उधार लेने से बचने की सलाह
वैसे तो यह कर्ज सकल राज्य घरेलू उत्पाद के तीन प्रतिशत की सीमा के भीतर लिया जा रहा है पर कर्ज का बोझ तो बढ़ ही रहा है। उधर, कैग ने अपनी रिपोर्ट में सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर सवाल उठाते हुए राजस्व व्यय के लिए उधार लेने से बचने की सलाह दी है।
प्रदेश में नियमित, संविदा और पेंशनरों को मिलाकर कर्मचारियों की संख्या 12-13 लाख के आसपास होती है। इनके वेतन और भत्ते पर 90 हजार 548 करोड़ रुपये व्यय वित्तीय वर्ष 2024-25 में अनुमानित है। नई भर्तियों के हिसाब से बजट में विभागों को स्थापना व्यय में प्रविधान करना होगा।
आठ से दस हजार कर्मचारी रिटायर भी होंगे
वार्षिक वेतन वृद्धि भी देनी होगी, जिसके लिए तीन प्रतिशत स्थापना व्यय बढ़ाकर प्रस्तावित करने के लिए वित्त विभाग ने पहले ही कह दिया है। इसी तरह आठ से दस हजार कर्मचारी सेवानिवृत्त भी होंगे। पेंशन सहित इनके स्वत्वों के भुगतान में भी राशि व्यय होगी। अभी राजस्व प्राप्तियों का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा स्थापना पर व्यय हो रहा है।
64 प्रतिशत तक पहुंचेगा महंगाई भत्ता
भारत सरकार जनवरी और जुलाई में अपने कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढ़ाती है। इसके अनुसार ही प्रदेश में महंगाई भत्ता और पेंशनरों की महंगाई राहत में वृद्धि करने की व्यवस्था है। हालांकि, कुछ समय से यह क्रम गड़बड़ाया हुआ है।
प्रदेश के कर्मचारियों को अभी 50 प्रतिशत की दर से महंगाई भत्ता दिया जा रहा है, जो केंद्रीय कर्मचारियों से तीन प्रतिशत कम है। वित्त विभाग ने सभी विभागों को 64 प्रतिशत के हिसाब से स्थापना व्यय में प्रविधान रखने के लिए कहा है। इसी तरह कर्ज और ब्याज अदायगी में हो रहे खर्च को देखें तो यह वित्तीय वर्ष 2024-25 में लगभग 30 हजार करोड़ रुपये अनुमानित है।
इन सभी प्रतिबद्ध व्ययों को मिला लिया जाए तो यह राशि एक लाख 17 हजार 945 करोड़ रुपये होती है यानी राजस्व प्राप्तियों का लगभग 45 प्रतिशत। जाहिर है कि जब सरकार राजस्व आय का इतना बड़ा हिस्सा वेतन-भत्ते, कर्ज और उसका ब्याज चुकाने में व्यय करेगी तो विकास योजनाओं के लिए राशि का प्रबंध करना चुनौतीपूर्ण ही रहेगा।
बिना ब्याज का लोन लिया जा रहा है
यही कारण है कि सरकार आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने और विकास परियोजनाओं को गति देने के लिए पूंजीगत निवेश बढ़ा रही है। इसके लिए केंद्र सरकार से विशेष सहायता योजना अंतर्गत दीर्घावधि के लिए बिना ब्याज का ऋण लिया जा रहा है।
आय के नए विकल्प तलाशने पर भी काम हो रहा है। उधर, विपक्षी दल कांग्रेस का दावा है कि सरकार की वित्तीय स्थिति गड़बड़ा रही है। कर्ज का बोझ इतना बढ़ गया है कि कर्ज चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है।
एक बार भी ओवर ड्राफ्ट की स्थिति नहीं बनीं
उधर, उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं कि सरकार की वित्तीय स्थिति बेहतर है। यही कारण है कि हमें बाजार से ऋण मिल रहा है। यह भी राज्य सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात की निर्धारित सीमा तीन प्रतिशत के दायरे में ही है।
निर्धारित समय पर ऋण और ब्याज की अदायगी हो रही है तो एक बार भी ओवर ड्राफ्ट की स्थिति नहीं बनी है। किसी भी चालू योजना को बंद नहीं किया गया।
ऐसे बढ़ रहा स्थापना व्यय
- वित्तीय वर्ष–राशि (करोड़ रुपये में)
- 2022-23–87,650
- 2023-24–1,05,358
- 2024-25– 1,17,945
(स्रोतः वित्त विभाग)