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महासमुंद। ग्राम झालखम्हरिया की 8 साल की नन्ही अपेक्षा साहू की जिंदगी अचानक एक ऐसे मोड़ पर आ गई, जहाँ हर पल मौत की परछाईं उसका पीछा कर रही थी। उसके मासूम बचपन पर ब्लड कैंसर के एक दुर्लभ प्रकार एक्यूट प्रोमाइलोसाइटिक ल्यूकेमिया (एपीएमएल) ने गहरा असर डाला। महीनों से चला आ रहा बुखार, शरीर पर उभरते चकत्ते और पीलापन किसी गंभीर खतरे का संकेत दे रहे थे। जब स्वास्थ्य विभाग की चिरायु टीम को उसकी हालत का पता चला, तो बिना देरी किए उसे एम्स रायपुर ले जाया गया, जहाँ विस्तृत जांच के बाद उसकी बीमारी की पुष्टि हुई।

इलाज की शुरुआत कीमोथेरेपी से हुई, लेकिन यह जितनी जरूरी थी, उतनी ही खतरनाक भी साबित हुई। पहली ही खुराक के बाद उसके शरीर ने गंभीर प्रतिक्रिया दी, अचानक दौरे पड़ने लगे, मस्तिष्क में रक्तस्राव (सीवीए) हो गया, और उसका बायाँ हिस्सा अर्ध-पक्षाघात (हेमिप्लेगिया) से प्रभावित हो गया। यह सब देखकर उसके माता-पिता का दिल बैठ गया। उन्हें लगा कि अब कुछ भी ठीक नहीं हो सकता, और उन्होंने इलाज बीच में ही रोकने का फैसला कर लिया।

लेकिन यही वह क्षण था जब चिरायु टीम ने उम्मीद का हाथ बढ़ाया। उन्होंने माता-पिता को समझाया कि यह लड़ाई अधूरी छोड़ देना ही असली हार होगी। उनकी काउंसलिंग और हौसले के चलते अपेक्षा का इलाज दोबारा शुरू हुआ। उसे बाल्को मेडिकल सेंटर में भर्ती कराया गया, जहाँ उसने 7 खुराक कीमोथेरेपी पूरी की। दर्द और तकलीफ के बावजूद, उसकी मासूम आँखों में जिंदा रहने की चमक बनी रही। धीरे-धीरे उसकी हालत सुधरने लगी, और हर गुजरते दिन के साथ वह इस जानलेवा बीमारी पर विजय पाने की ओर बढ़ती गई। ऐसे कठिन समय में आयुष्मान योजना के अंतर्गत 5 लाख रुपए की वित्तीय सहायता भी कारगर साबित हुई। सितंबर 2024 में, जब उसने अपनी आखिरी कीमोथेरेपी पूरी की, तो यह सिर्फ एक इलाज का अंत नहीं था, बल्कि एक नई जिंदगी की शुरुआत थी। अब वह सिर्फ दवाइयाँ ले रही है, लेकिन पूरी तरह स्वस्थ महसूस कर रही है। अभी कु. अपेक्षा कक्षा दूसरी में अध्ययनरत् है। उसकी हँसी अब दर्द से भरी नहीं, बल्कि जज़्बे और हिम्मत की कहानी बयां करती है। अपेक्षा सिर्फ एक कैंसर सर्वाइवर नहीं, बल्कि साहस और उम्मीद की मिसाल है। उनकी माता-पिता के लिए जीने का संबल है।